Thursday, September 24, 2009
आख़िर क्यो ?
''जिंदगी के सफर में गुजर जाते है जो मकाम
वो फिर नही आते ,वो फिर नही आते।''
फ़िर क्यो लोग ये भूल जाते है?क्यो हमेशा आज में कल की बाते करते है ?
मैंने ये किया। था। मैंने वो किया था । मेरी क्या शान थी। कितना खुशकिस्मत था । मैं कितना बदकिस्मत था। मैं कैसे बदनाम था। मैं कैसे गुमनाम था। मेरे साथ ऐसा हुआ था। मेरे साथ वैसा हुआ था।
क्यो इस 'था-थी' के आस-पास ही हम घूमते रहते मेरी?क्यो हम आज का पल बीते हुए कल के बारे में सोचकर बोलकर बिताते है । क्यो आज पर कल का साया सा होता है ?
आनेवाला पल अगर जानेवाला है तो क्यो हम ख़ुद को उस पल में बाँधकर रखते है?
आख़िर क्यो?
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pudhe kahi nahi ka?
ReplyDeletekashachy pudhe?
ReplyDeletebhavishya changale ghadwane awaghad aste. bhutkalacha purawa dyawa lagat nahi . je kahi ghadayache te ghadun gelele aste . mhanunch asawe na ' meri kya shaan thi '!
ReplyDeleteSnehal .
पण यात इतरांचा वेळ वाया जातो हे लक्षात येत नाही त्यांच्या.
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